जन्म लेते ही प्राणी मोह -पाश मे बंध जाता है
माँ की मोहिनी मूरत देखकर मुस्कराता है
रंग -बिरंगे खिलोनो की दुनिया मे रम जाता है
भाई -बहन ,दोस्त -बंधुयो मे हँसता -खिलखिलाता है
... न फिक्र न फाका ,मस्त -मलंग -सा जीवन बिताता है
जब योवन की दहलीज पर खुद को खड़ा पता है
तब नए सपने लिये कल्पना के घोड़े दोडाता है
लक्ष्य प्राप्त कर सफलता की सीढ़ी तो चढ़ जाता है
लेकिन जिसने पैदा किया उसी को भूल जाता है
दुनिया मेरी मुट्ठी मे ,यह सोच कर इतराता है
प्रिय का संग पाकर गृहस्थी को अपनाता है
बच्चो संग खेलकर अपना बचपन दोहराता है
धीरे -धीरे जीवन की भाग -दौड़ मे पड़कर उलझता जाता है
फिर वृद्ध होकर स्वयं को असहाए पाता है
जीवन साथी से बिछुड़ कर अकेला रह जाता है
सोचता है कहा गए ,माता -पिता जिन्होंने जन्म दिया
कहा गए संगी -साथी जिनके साथ जीवन -व्यतीत किया
इंसान का वजूद क्या यही सोच पछताता है
आशा -निराशा के दौर से निकलकर
काल -चक्र मे फंस जाता है
किये गये कर्मो के अनुसार
फिर से नया जन्म पता है
इस तरह आवागमन का चक्र
निरंतर चलता जाता है
by Brajesh Soni